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आइसक्रीम - लेखनी कविता -26-Feb-2022

गूँज उठती थी जब गाँव के गलियारों में
आइसक्रीम वाले की घंटी की आवाज़
हलचल मचने लगती थी सबके घरों में
बच्चों के मन में बजता घंटी का साज।

बचपन के साथ-साथ भूली ये शौक
ज़िंदगी की भाग-दौड़ ने लगाई रोक
कभी सर्दी-जुकाम तो कभी कोरोना
हुआ उलझनों में आइसक्रीम को खोना। 

अचानक सड़क पर देखा ठेला वाडीलाल 
मन में हिलोरे लेने लगा बचपन का मलाल
सर्दी-गर्मी, कोरोना कोई भी गिराए गाज
मजे ले-लेकर चॉकलेट फ्लेवर खाऊँगी आज।

सोचा यह आइसक्रीम भी कैसे रंग दिखाती है
बड़े-बड़े अमीरों के मुँह से भी लार टपक जाती है
कभी दोस्तों की दोस्ती को प्रगाढ़ बनाती है
 जुदाई में उन मीठे लम्हों को याद दिलाती है।

अचानक देखकर अपनी आइसक्रीम का पिघलना
लगा वह चाहती हो अपने स्वरूप से मिलना
कोन से बाहर निकलकर उसका यूँ टपकना
मानो जैसे हो दुनिया की उलझन से निकलना।

 सोचने लगी ज़िंदगी भी है मानो एक आइसक्रीम
जो हर पल मानव को दिखाती है नए-नए ड्रीम
अति लुभावने रंगों में हर पल नजर आती है
अलग-अलग स्वाद और रूपों में हमें हर्षाती है।

स्वयं ठंडी रहकर हमें भी राहत पहुँचाती है
दुखों का ताप पड़ते ही जीवन में बिखर जाती है
समय का सदुपयोग करो तो सुकून दे जाती है
समय व्यर्थ करने पर हाथ से निकल जाती है।

पिघली हुई आइसक्रीम परेशानी बढ़ाती है
समय की क्या कीमत है, ये हमें समझाती है
 जब तक सहिष्णु बन दुखों का ताप सहती है
तभी तक सम्मान पा लोगों की जिह्वा पर रहती है।

उस दिन जाना आइसक्रीम भी तस्वीर दिखाती है
जीवन के नित उतार-चढ़ाव हमें समझाती है
निराशा के परिणाम से हमें अवगत कराती है
खुशियाँ और प्रेम बाँटना हमें सिखलाती है।

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9 Comments

Seema Priyadarshini sahay

27-Feb-2022 01:28 AM

बहुत खूबसूरत

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Dr. Arpita Agrawal

27-Feb-2022 09:02 AM

बहुत बहुत धन्यवाद सीमा जी

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Gunjan Kamal

26-Feb-2022 07:06 PM

Very nice

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Dr. Arpita Agrawal

27-Feb-2022 04:23 PM

Thanks a lot Gunjan ji

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Ayaansh Goyal

26-Feb-2022 05:40 PM

वाह क्या कविता है!!

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